दवाओं का अभाव और मरीजों की मजबूरी
अस्पताल में आवश्यक दवाओं की उपलब्धता न होने से मरीजों को बाहर से दवाएं खरीदने के लिए विवश किया जा रहा है। सामान्य बीमारियों के लिए भी प्रिस्क्रिप्शन पर महंगी दवाएं बाहर की मेडिकल दुकानों से मंगाई जाती हैं। इससे गरीब और मध्यम वर्गीय मरीजों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ता है।
कई मामलों में यह भी देखने को मिला है कि दवा मरीज द्वारा खरीदी जाती है, पर उसके अस्पताल से चले जाने के बाद वही दवा उसी मेडिकल स्टोर को वापस कर दी जाती है। इस प्रक्रिया से यह अंदेशा और मजबूत होता है कि दवाओं की खरीद-फरोख्त के नाम पर आर्थिक लेन-देन हो रहा है।
जांच सुविधाओं का संकट
अहरौरा अस्पताल में सिर्फ दवाएं ही नहीं, बल्कि जांच की सुविधाएं भी प्रभावित हैं। दो माह से शुगर जांच किट उपलब्ध नहीं है, जिसके कारण मरीजों को निजी पैथोलॉजी सेंटर में सौ से डेढ़ सौ रुपये खर्च कर जांच करानी पड़ रही है। यह स्थिति न केवल स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल उठाती है बल्कि गरीब तबके के लिए भारी समस्या भी है।
स्वास्थ्यकर्मियों का व्यवहार और जिम्मेदारी
अस्पताल में कार्यरत नर्सों पर गंभीर आरोप लग रहे हैं। बताया जाता है कि कई नर्सें पिछले बारह वर्षों से एक ही स्थान पर तैनात हैं। लंबे समय से एक ही जगह रहने के कारण उनमें ढिलाई और मरीजों के प्रति उदासीनता साफ नजर आती है। मरीजों के साथ उनका व्यवहार कठोर बताया जाता है, जो संवेदनशील स्वास्थ्य सेवा के सिद्धांतों के विपरीत है।
इसके अतिरिक्त, नर्सों द्वारा प्रसव कराने आई महिलाओं को जानबूझकर निजी नर्सिंग होम भेजने की भी शिकायतें हैं। इससे साफ संकेत मिलता है कि अस्पताल और निजी संस्थानों के बीच लाभ कमाने का गठजोड़ हो सकता है।
मरीजों पर पड़ने वाला असर
इन परिस्थितियों के कारण अहरौरा और आसपास के गांवों से आने वाले मरीज निराश और हताश हैं। जिन लोगों की आर्थिक स्थिति कमजोर है, उनके लिए दवाएं और जांच दोनों भारी पड़ रहे हैं।
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